वाशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीजा शुल्क में भारी इजाफे की घोषणा ने आईटी और टेक सेक्टर में खलबली मचा दी है। नए प्रस्ताव के अनुसार, H-1B वीजा पर काम करने वाले विदेशी पेशेवरों के लिए अब सालाना शुल्क $100,000 (करीब ₹83 लाख) तक हो सकता है। इसका सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी पेशेवरों पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
माइक्रोसॉफ्ट और जेपी मॉर्गन की चेतावनी
ट्रंप के एलान के बाद माइक्रोसॉफ्ट, जेपी मॉर्गन और कई अन्य मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को सतर्क रहने की सलाह दी है। माइक्रोसॉफ्ट ने एक आंतरिक ईमेल एडवाइजरी जारी करते हुए H-1B और H-4 वीजा धारकों से निकट भविष्य में अमेरिका में ही रहने और जल्द लौटने की सिफारिश की है। कंपनी ने अमेरिका से बाहर मौजूद वीजा धारक कर्मचारियों को तत्काल वापस लौटने का आग्रह किया है। वहीं जेपी मॉर्गन के इमिग्रेशन काउंसल ने भी कर्मचारियों को अंतरराष्ट्रीय यात्रा से बचने और अगली सूचना तक अमेरिका में ही बने रहने की सलाह दी है।
ट्रंप का तर्क, “केवल सर्वश्रेष्ठ को देंगे प्रवेश”
ओवल ऑफिस में वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक की मौजूदगी में ट्रंप ने घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा, “हमें कामगारों की ज़रूरत है, बेहतरीन कामगारों की। यह शुल्क यह सुनिश्चित करेगा कि अमेरिका में केवल असाधारण प्रतिभाएं ही प्रवेश पाएं, जो अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां न छीनें बल्कि उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा करें।”
ट्रंप ने यह भी कहा कि वीजा शुल्क से जुटाई गई धनराशि का इस्तेमाल सरकारी कर्ज चुकाने और करों में कटौती के लिए किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि इस कदम से अमेरिका के खजाने को 100 अरब डॉलर से अधिक का लाभ होगा।
व्हाइट हाउस की दलील, “H-1B प्रणाली का हो रहा दुरुपयोग”
व्हाइट हाउस के स्टाफ सचिव विल शार्फ के अनुसार, H-1B वीजा कार्यक्रम अमेरिकी इमिग्रेशन प्रणाली में सबसे अधिक दुरुपयोग होने वाले विकल्पों में से एक बन चुका है। उनका कहना है कि यह वीजा ऐसे क्षेत्रों में काम करने वाले विदेशी कामगारों को अनुमति देता है जहां अमेरिकी नागरिक कार्य नहीं करते, लेकिन इसका इस्तेमाल व्यापक रूप से कम वेतन वाले कामगारों को लाकर अमेरिकी कर्मचारियों की जगह लेने के लिए किया जा रहा है।
क्या है H-1B वीजा?
H-1B वीजा एक गैर-अप्रवासी (Non-Immigrant) वीजा है जो अमेरिका (USA) उन विदेशी नागरिकों को देता है जो किसी विशेष पेशेवर क्षेत्र जैसे इंजीनियरिंग, आईटी, विज्ञान, फाइनेंस, मेडिकल आदि में विशेष कौशल या डिग्री रखते हैं और अमेरिकी कंपनियों के लिए अस्थायी रूप से काम करना चाहते हैं।
भारतीय पेशेवरों पर सबसे बड़ा असर
भारत, खासकर आईटी सेक्टर, से हर साल हजारों पेशेवर H-1B वीजा के तहत अमेरिका जाते हैं। ऐसे में इस फैसले का सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों और कर्मचारियों पर पड़ने की आशंका है। नई नीति के तहत भारतीय पेशेवरों को अमेरिका में स्थायी रोजगार प्राप्त करना न सिर्फ महंगा, बल्कि जटिल भी हो सकता है।