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क्या आप भी करते हैं गर्मियों में अधिक आम का सेवन, अगर हां, तो जान लीजिये इसके नुकसान  

Category Archives: जीवन शैली

क्या आप भी करते हैं गर्मियों में अधिक आम का सेवन, अगर हां, तो जान लीजिये इसके नुकसान  

गर्मियों का मौसम आते ही आम की मिठास हर किसी को लुभाती है। ‘फलों का राजा’ कहलाने वाला आम न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है। आम में फाइटोन्यूट्रिएंट्स, विटामिन-सी, विटामिन-ए, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो इम्युनिटी को मजबूत करते हैं और शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।

हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, अधिक मात्रा में आम खाने से पेट की समस्याएं, ब्लड शुगर में वृद्धि और अन्य स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं। इसके अलावा, केमिकल से पके आम खाने से टॉक्सिसिटी का खतरा भी बढ़ सकता है। आइए जानते हैं ज्यादा आम खाने के क्या नुकसान हैं, साथ ही ये भी जानेंगे कि आम खरीदने से पहले क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

ज्यादा आम खाने के नुकसान-

पाचन संबंधी समस्याएं-
आम में फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो सामान्य मात्रा में पाचन के लिए फायदेमंद है। लेकिन ज्यादा आम खाने से डायरिया, पेट में ऐंठन, गैस या अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं। खासकर, अगर इसे खाली पेट या रात में खाया जाए, तो पाचन तंत्र तो प्रभावित कर सकता है।

ब्लड शुगर में वृद्धि
आम में प्राकृतिक शर्करा अधिक होती है। अधिक मात्रा में आम खाने से ब्लड शुगर लेवल अचानक बढ़ सकता है, जो डायबिटीज के मरीजों के लिए खतरनाक हो सकता है। सामान्य लोगों में भी अधिक आम खाने से यह थकान या चक्कर का कारण बन सकता है।

केमिकल से पकने का खतरा
बाजार में बिकने वाले कई आम केमिकल की मदद से पकाए जाते हैं। इसके लिए कैल्शियम कार्बाइड (CaC2) जैसे हानिकारक रसायन का इस्तेमाल होता है, जो पानी के साथ मिलकर एसिटिलीन गैस रीलीज होता है। यह गैस फलों को जल्दी पकाने में मदद करती है, लेकिन इसे खाने से टॉक्सिसिटी, त्वचा की समस्याएं, पेट में जलन, और गंभीर मामलों में पॉइजनिंग या किडनी फेलियर का खतरा हो सकता है।

आम खाने से पहले जरूरी सावधानियां-

बाजार से लाए गए आम को कम से कम 2 घंटे पानी में भिगोकर रखें। इसके बाद, बहते पानी में अच्छी तरह धोकर ही खाएं। यह आम के उपरी परत पर लगे केमिकल और कीटाणुओं को हटाने में मदद करता है।
एक दिन में 1-2 मध्यम आकार के आम पर्याप्त हैं। डायबिटीज के मरीज डॉक्टर की सलाह से ही इसका सेवन करें।

सुबह खाली पेट आम खाने से पाचन संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं। इसलिए खाली पेट आम खाने से बचना चाहिए।
ऐसे आम खरीदें जो प्राकृतिक रूप से पके हों। केमिकल से पके आम की पहचान उनके असमान रंग से की जा सकती है।
कुछ लोगों को आम खाने से एलर्जी, जैसे त्वचा पर चकत्ते या खुजली, हो सकती है। अगर ऐसा हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।]

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गर्मियों में क्यों बढ़ जाता है यूटीआई का खतरा? आइये जानते हैं क्या कहते हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ

गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन की समस्या होना बहुत आम बात है। डिहाइड्रेशन की वजह से शरीर में थकान और कमजोरी होने लगती है, कई बार यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) की समस्या भी देखने को मिलती है। कई बार ये समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि उठने-बैठने में भी परेशानी होने लगती है। विशेषज्ञों के अनुसार, गर्मिमी के मौसम में पर्याप्त पानी न पीने से मूत्राशय में बैक्टीरिया पनपने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे यूटीआई की समस्या हो सकती है। अगर किसी को बार-बार यूटीआई की समस्या हो रही है तो इसका प्रभाव किडनी पर भी पड़ सकता है। अच्छी बात यह है कि गर्मी के दिनों में आप कुछ सावधानियां बरतकर इस गंभीर समस्या से दूर रह सकते हैं। आइए इस लेख में इसी के बारे में विस्तार से जानते हैं।

डिहाइड्रेशन के कारण बढ़ सकती है समस्या
गर्मियों में पसीने के कारण शरीर से पानी तेजी से निकलता है। अगर इसकी पूर्ति न की जाए, तो डिहाइड्रेशन की स्थिति बन सकती है। डिहाइड्रेशन के कारण मूत्राशय में बैक्टीरिया पनपने का खतरा बढ़ जाता है, जो यूटीआई का प्रमुख कारण बनता है। खासकर महिलाओं में मूत्रमार्ग की संरचना के कारण यह समस्या अधिक देखी जाती है। पर्याप्त पानी न पीना, कैफीनयुक्त पेय पदार्थों का अधिक सेवन, और अस्वच्छता भी इस जोखिम को बढ़ाते हैं।

कैसे करें इसकी पहचान?
यूटीआई के शुरुआती लक्षणों को पहचानना जरूरी है ताकि समय रहते उपचार शुरू किया जा सके। इसके मुख्य लक्षण हैं-
पेशाब करते समय जलन या दर्द होना
बार-बार पेशाब आने की इच्छा होना
मूत्र का रंग गहरा होना
पेट के निचले हिस्से में दर्द होना
हल्का बुखार होना
कुछ मामलों में थकान और कमजोरी भी महसूस हो सकती है

यूटीआई के लक्षण दिखें तो क्या करें?
अगर आपको यूटीआई के लक्षण महसूस हों, तो सबसे पहले पानी का सेवन बढ़ाएं। दिनभर में कम से 2.5 से 3 लीटर पानी पीएं। पर्याप्त पानी पीने से मूत्राशय में जमा बैक्टीरिया बाहर निकल सकते हैं। इसके अलावा, बिना देर किए किसी यूरोलॉजिस्ट या सामान्य चिकित्सक से सलाह लें।

यूटीआई के खतरे से बचे रहने के लिए क्या करें?
यूटीआई से बचाव के लिए कुछ सावधानियां बरतना जरूरी है। सबसे पहले, दिनभर में कम से कम 2.5 से 3 लीटर पानी पीने की आदत डालें। गर्मियों में नींबू पानी, नारियल पानी, और फलों का रस जैसे हाइड्रेटिंग पेय पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करें। पर्सनल हाइजीन का विशेष ध्यान रखें। कॉटन के अंडरगारमेंट्स पहने और टाइट कपड़ों से बचें। इसके अलावा हर तीन घंटे में एक बार पेशाब जरूर करें। जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या है उनमें यूटीआई का खतरा अधिक होता है, ऐसे लोगों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए।

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गर्मी से राहत या खतरा? एसी में ज्यादा समय बिताना सेहत पर डाल सकता है भारी असर

आज के आधुनिक युग में गर्मी से राहत पाने के लिए एयर कंडीशनर (एसी) का उपयोग आम बात हो गई है। घर, ऑफिस, मॉल से लेकर गाड़ियों तक एसी का इस्तेमाल किया जाता है। कई बार तो एसी को स्टेटस सिंबल के रूप में भी देखा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर आप एसी में ज्यादा देर तक समय बिताते हैं तो इसका प्रभाव आपके स्वास्थ्य पर पड़ सकता है?

वेबएमडी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार एसी वैसे तो सुरक्षित है, पर एसी वाली जगहों पर वेंटिलेशन यानी हवा के आने-जाने की अच्छी व्यवस्था भी जरूर होनी चाहिए। इस रिपोर्ट के अनुसार, अगर आपका एसी खराब वेंटिलेशन वाली जगह पर लगा है तो आपको सिरदर्द, सूखी खांसी, चक्कर आने-मतली, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी और थकान जैसी समस्याएं हो सकती हैं। आइए इस लेख में इसी के बारे में विस्तार से समझते हैं।

सिरदर्द और माइग्रेन का खतरा
एक्सपर्ट्स के अनुसार, जो लोग एसी में देर तक रहते हैं उनमें सिरदर्द और माइग्रेन का जोखिम बढ़ जाता है। इसका एक मुख्य कारण है कि एसी कमरे की हवा से नमी को सोख लेना है, जिससे हवा बहुत ज्यादा शुष्क हो जाती है। यह शुष्क हवा साइनस पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, साथ ही इस शुष्क वातावरण का प्रभाव हमारी आंखों पर भी पड़ता है, जो सिरदर्द का कारण बन सकता है।

इसके अलावा, जब लोग ठंडे एसी वाले माहौल से अचानक गर्मी में बाहर निकलते हैं, तो तापमान में यह तीव्र बदलाव कुछ संवेदनशील लोगों में माइग्रेन के दौरे को ट्रिगर कर सकता है।

श्वसन संबंधी समस्याओं का खतरा
जो लोग एसी में ज्यादा देर तक रहते हैं, वो उनमें अन्य लोगों की तुलना में श्वसन संबंधी समस्याएं (नाक मार्ग में जलन, सांस लेने में परेशानी) अधिक होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एसी से निकलने वाली ठंडी और शुष्क हवा सीधे संपर्क में आने पर नाक और गले की नाजुक झिल्लियों को सुखा सकती हैं, जिससे जलन, खराश और रूखापन महसूस हो सकता है। जिन लोगों को अस्थमा-ब्रोंकाइटिस की समस्या होती है उन्हें एसी में ज्यादा समय बिताने से बचना चाहिए।

मेटाबॉलिज्म पर असर
कुछ अध्ययनों और विशेषज्ञों के विचारों के अनुसार, एसी में लगातार एक समान ठंडे तापमान में रहने का असर शरीर के मेटाबॉलिज्म (चयापचय) पर भी पड़ सकता है। सामान्य परिस्थितियों में, जब शरीर को अलग-अलग तापमान का सामना करना पड़ता है, तो वह अपने आंतरिक तापमान को बनाए रखने के लिए कुछ ऊर्जा खर्च करता है। गर्मी लगने पर पसीना आता है और ठंड लगने पर शरीर गर्मी पैदा करने की कोशिश करता है, इन प्रक्रियाओं में कैलोरी बर्न होती है।

एसी वाले नियंत्रित माहौल में रहने से शरीर को तापमान संतुलन के लिए उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, जिससे आप कम फैट बर्न कर पाते हैं। इसके अलावा आप ठंडे वातावरण में आप सामान्य से कम पानी पीते हैं जिसके कारण भी पाचन स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर हो सकता है। ये स्थितियां कब्ज-अपच जैसी दिक्कतों का कारण बन सकती हैं।

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क्या बालों का गिरना थायरॉइड का संकेत है? जानिए कारण और समाधान

आजकल बालों का झड़ना एक आम समस्या बन गया है, लेकिन जब बाल तेजी से और असामान्य रूप से झड़ने लगें, तो यह चिंता का विषय हो सकता है। कई बार यह सिर्फ मौसम, तनाव या गलत शैंपू का परिणाम नहीं होता, बल्कि थायराइड जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में लगभग 4.2 करोड़ लोग थायराइड से पीड़ित हैं, और विशेषज्ञों के मुताबिक थायरॉइड की समस्या बालों के झड़ने का एक प्रमुख कारण हो सकती है। आइए, जानते हैं कि थायरॉइड और बालों के झड़ने का क्या संबंध है और इससे कैसे बचा जा सकता है?

थायरॉइड से बाल झड़ने का क्या है कनेक्शन?
थायरॉइड ग्रंथि, जो गले में तितली के आकार की होती है, शरीर के मेटाबॉलिज्म, एनर्जी लेवल और हार्मोन बैलेंस को कंट्रोल करती है। जब यह ग्रंथि ठीक से काम नहीं करती, तो हाइपोथायरायडिज्म (कम सक्रिय) या हाइपरथायरायडिज्म (अधिक सक्रिय) की स्थिति पैदा होती है। दोनों ही स्थितियों में बालों का तेजी से झड़ना एक सामान्य लक्षण है। हाइपोथायरायडिज्म में बाल रूखे, पतले और कमजोर हो जाते हैं, जबकि हाइपरथायरायडिज्म में मेटाबॉलिज्म की अधिकता के कारण बालों के रोम कमजोर पड़ते हैं।

विशेषज्ञ के मुताबिक, ‘थायरॉइड हार्मोन का असंतुलन बालों के विकास चक्र को बाधित करता है, जिससे बाल समय से पहले झड़ने लगते हैं। अगर रोजाना 100 से ज्यादा बाल झड़ रहे हैं, तो ये थाइराइड का लक्षण हो सकता है और ऐसी स्थिति में जरूर टेस्ट करवाना चाहिए।’

थायरॉइड के अन्य लक्षण
बालों के झड़ने के अलावा, थायरॉइड के कुछ अन्य लक्षणों पर भी ध्यान देना जरूरी है। हाइपोथायरायडिज्म में थकान, वजन बढ़ना, रूखी त्वचा, ठंड सहन न करना और कब्ज जैसी समस्याएं हो सकती हैं। वहीं, हाइपरथायरायडिज्म में वजन घटना, चिड़चिड़ापन, तेज हृदय गति, ज्यादा पसीना और नींद की कमी जैसे लक्षण दिखते हैं। खासकर महिलाओं में गर्भावस्था या मेनोपॉज के दौरान थायरॉइड की समस्या अधिक देखी जाती है।

क्या हैं कारण?
थायरॉइड के कई कारण हो सकते हैं, जैसे आनुवंशिकता, तनाव, गलत खानपान, आयोडीन की कमी, या सोया उत्पादों का अधिक सेवन। गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलाव भी थायरॉइड को ट्रिगर कर सकते हैं।

बचाव और उपाय
अगर बाल झड़ने के साथ थायरॉइड के अन्य लक्षण भी दिख रहे हैं तो, ऐसी स्थिति में TSH, T3 और T4 टेस्ट करवाएं। आयोडीन, सेलेनियम और जिंक से भरपूर फूड प्रोडक्ट जैसे मछली, अंडे, दही और हरी सब्जियां खाएं। सोया, गोभी और प्रोसेस्ड फूड से बचें। थायरॉइड पॉजिटिव होने पर डॉक्टर की सलाह लें।

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क्या आप भी अपने बच्चों को प्लास्टिक की बोतल से पिलाते हैं दूध, अगर हां, तो जान लीजिये इसके दुष्प्रभाव 

आजकल अधिकांश घरों में छोटे बच्चों को दूध पिलाने के लिए प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग आम बात हो गई है। यह सुविधा तो देती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह आदत आपके बच्चे की सेहत पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है? विशेषज्ञों की मानें तो प्लास्टिक बोतलों का नियमित उपयोग बच्चों के शारीरिक ही नहीं, मानसिक विकास को भी प्रभावित कर सकता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से इस बात की चेतावनी दे रहे हैं कि शिशुओं के लिए प्लास्टिक की बोतलें सुरक्षित नहीं हैं। इनसे न केवल शरीर में माइक्रोप्लास्टिक जमा हो सकता है, बल्कि इसके कारण क्रॉनिक बीमारियों और बौद्धिक विकास में बाधा का भी खतरा रहता है।

हाल ही में एक अध्ययन में यह सामने आया है कि प्लास्टिक बोतलों में मौजूद रसायन बच्चों के आईक्यू स्तर को भी प्रभावित कर सकते हैं। अगर बोतलों की सफाई में लापरवाही बरती जाए, तो यह संक्रमण का कारण बन सकती है, जिससे शिशु की सेहत को अनेक प्रकार के नुकसान हो सकते हैं।

हानिकारक रसायनों की उपस्थिति

स्वीडन की कार्लस्टेड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कार्ल गुस्ताफ बोर्नहैग बताते हैं कि प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होने वाला रसायन बिस्फेनॉल एफ बच्चों की तंत्रिका प्रणाली के विकास से जुड़े जीन पर नकारात्मक असर डाल सकता है। गर्भावस्था के दौरान इसके संपर्क में आने से बच्चों का बौद्धिक स्तर सात साल की उम्र तक घट सकता है।

माइक्रोप्लास्टिक का खतरा

गर्म पानी या धूप में रखे जाने पर प्लास्टिक की बोतल से रसायन दूध या अन्य पेय में मिल सकते हैं। इससे बच्चों के शरीर में सूक्ष्म प्लास्टिक कण और विषैले रसायन पहुंच सकते हैं, जो सेहत को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।

आईक्यू पर प्रभाव की पुष्टि

झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में किए गए शोध में 100 शिशुओं पर अध्ययन किया गया, जिसमें पाया गया कि प्लास्टिक की बोतलों से दूध पीने वाले बच्चों में आगे चलकर आईक्यू स्तर में गिरावट का खतरा अधिक होता है।

संक्रमण का खतरा

इसके अलावा, अगर बोतलों की नियमित और सही तरीके से सफाई नहीं की जाती, तो उनमें हानिकारक बैक्टीरिया पनप सकते हैं। इससे शिशुओं को ई.कोलाई, साल्मोनेला और स्ट्रेप्टोकोकस जैसे संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है।

विशेषज्ञों की सलाह

डॉक्टरों और बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय है कि शिशुओं को बोतल की बजाय कटोरी और चम्मच से दूध पिलाना अधिक सुरक्षित विकल्प है। केवल अत्यधिक आवश्यकता होने पर ही बोतल का प्रयोग किया जाना चाहिए।

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क्या आपको भी आता है बहुत ज्यादा गुस्सा, अगर हां, तो जान लीजिये इसके नुकसान

गुस्सा आना एक स्वाभाविक प्रकिया है, ये एक सामान्य मानवीय भावना है। किसी चीज को लेकर निराशा, गलत महसूस करने या स्थितियों से नियंत्रण खोने की प्रतिक्रिया में आपको गुस्सा आता है। इसे तनाव को कम करने के लिए शरीर के मैकेनिज्म का भी एक हिस्सा माना जाता है। हालांकि गुस्सा या कोई भी शारीरिक भावना तभी तक अच्छी है जब तक ये आपके नियंत्रण में रहती है।

क्या आपको बहुत ज्यादा या लगातार गुस्सा आता रहता है? अगर हां तो सावधान हो जाइए, ये स्थिति आपकी सेहत को कई प्रकार से प्रभावित करने वाली हो सकती है। बहुत ज्यादा गुस्सा आने की समस्या हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। कुछ स्थितियों में इसके जानलेवा दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं।

ज्यादा गुस्सा आने का हृदय स्वास्थ्य पर असर

कई शोध इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि ज्यादा गुस्सा आने का आपके हृदय स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर हो सकता है।

ब्रिटिश हार्ट एसोसिएशन की एक रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर आपको अक्सर गुस्सा आता रहता है तो ये ब्लड प्रेशर को काफी बढ़ाने वाली स्थिति हो सकती है। हाई ब्लड प्रेशर के कारण हृदय स्वास्थ्य पर दबाव बढ़ता है जिससे हार्ट अटैक आने का खतरा भी बढ़ जाता है।

जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट बताती है कि अक्सर गुस्से में रहने वाले लोगों की रक्त वाहिकाओं में मौजूद कोशिकाएं ठीक से काम करना बंद कर देती हैं जिसके कारण कोरोनरी आर्टरी डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है।

हार्ट अटैक का बढ़ जाता है खतरा

साल 2015 में सर्कुलेशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि तीव्र स्तर के गुस्से के 2 घंटे के भीतर हार्ट अटैक होने की आशंका लगभग पांच गुना बढ़ जाती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि गुस्से की अवस्था में स्ट्रेस हार्मोन (जैसे एड्रेनालिन और कोर्टिसोल) बहुत तेजी से बढ़ते हैं, जिससे ब्लड प्रेशर और दिल की धड़कन को असामान्य रूप से बढ़ा देते हैं। इससे हार्ट अटैक होने का खतरा बढ़ जाता है।

लगातार गुस्सा करने वाले लोगों की धमनी में सूजन और संकुचन की दिक्कत भी अधिक होती है, जो समय के साथ धमनियों की कठोरता का कारण बनती है, इसके कारण भी हार्ट अटैक हो सकता है।

ज्यादा गुस्सा आने के और भी कई नुकसान

ज्यादा गुस्सा आने की समस्या सिर्फ हृदय स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, इसके और भी कई प्रकार के दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
बार-बार गुस्सा आने की समस्या मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डालती है, जो डिप्रेशन और एंग्जायटी को बढ़ावा दे सकती है।
गुस्सा आने की स्थिति नींद की समस्या उत्पन्न करने लगती है। इससे आपको एकाग्रता में कमी और निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर हो सकता है।
इस तरह का भावनाएं पाचन समस्याएं जैसे अल्सर, एसिडिटी को भी बढ़ाने वाली हो सकती हैं।

गुस्से को कंट्रोल कैसे किया जाए?

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, आप दिनचर्या में कुछ प्रकार के बदलाव करके गुस्से को कंट्रोल कर सकते हैं साथ ही इसके कारण होने वाली समस्याओं के खतरे को भी कम कर सकते हैं। गहरी सांस लेने, मेडिटेशन-योग, नियमित व्यायाम की आदत बनाकर आप गुस्से को नियंत्रित कर सकते हैं।

हालांकि अगर इन उपायों से भी आपको लाभ न मिल रहा हो तो किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह ले लें। कई बार डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी स्थितियां भी गुस्से को बढ़ाने वाली हो सकती हैं जिसका समय पर निदान और इलाज किया जाना जरूरी है। डॉक्टर आपको समस्या के आधार पर दवाओं और थेरेपी के माध्यम से गुस्स को कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं।

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कहीं आप भी तो नहीं करते खाना खाने के बाद यह गलतियां, अगर हां, तो जान लीजिये इसके दुस्प्रभाव 

भोजन का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। पौष्टिक आहार का सेवन करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। यह शरीर को काम करने, बढ़ने और स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। ऐसे में जैसा भोजन आप करते हैं, वैसा ही स्वास्थ्य लाभ मिलता है लेकिन कुछ खराब आदते हैं जो पौष्टिक आहार के सेवन के बाद भी शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। यह आदते खाने के बाद की होती है।

आप चाहे जितने पौष्टिक आहार का सेवन कर लें लेकिन अगर खाने के बाद कुछ आदतों को नहीं बदलेंगे तो पाचन तंत्र पर दुष्प्रभाव होगा। अक्सर हम अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जो पेट की गड़बड़ी से लेकर गंभीर बीमारियों तक की वजह बन सकती है। भोजन के बाद सही आदतें अपनाकर आप पाचन तंत्र को मजबूत रख सकते हैं और स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं। इस लेख में आपको ऐसी बात गलतियां बताई जा रही हैं जो आमतौर पर लोग खाना खाने के बाद करते हैं, जिसका बुरा असर उनकी सेहत पर पड़ता है।
आइए जानते हैं कि खाना खाने के तुरंत बाद कौन से पांच काम भूल से भी नहीं करने चाहिए ताकि अगली बार किन 5 गलतियों से बचा जा सके।

तुरंत पानी पीना

कुछ लोग खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीते हैं। इससे पाचन क्रिया बाधित होती है। अगर आप खाना खाने के तुरंत बाद पानी पिएंगे तो खाना पचने में समय ज्यादा लगता है और एसिडिटी व ब्लोटिंग की समस्या हो सकती है। सही तरीका है कि खाने के लगभग 30 मिनट बाद ही पानी पिएं। अगर बहुत प्यास लगे तो गुनगुना पानी बहुत कम मात्रा में लें।

तुरंत सोना या लेटना

अक्सर लोग खाने के बाद तुरंत आराम करने के लिए लेट जाते हैं। खाने के बाद लेटने से पेट का एसिड भोजन के साथ ऊपर की ओर आ सकता है जिससे एसिड रिफ्लक्स, सीने में जलन और बदहजमी हो सकती है। आप इन समस्याओं से बचना चाहते हैंं तो खाने के बाद कम से कम 30-40 मिनट तक बैठे रहें या हल्की वॉक करें।

धूम्रपान करना

वैसे तो धूम्रपान करना ही सेहत के लिए नुकसानदायक होता है लेकिन भोजन के तुरंत बाद धूम्रपान करना सेहत के लिए ज्यादा घातक हो सकता है। इससे निकोटिन का अवशोषण दोगुना हो जाता है, जिससे आंतों को नुकसान पहुंचता है और पाचन तंत्र कमजोर होता है।धूम्रपान पूरी तरह छोड़ना बेहतर है, लेकिन खासकर भोजन के एक घंटे पहले और बाद में न करें।

व्यायाम

खाने के तुरंत बाद सामान्य गति से टहल सकते हैं लेकिन व्यायाम करने के बारे में भी न सोचें। खाना खाने के बाद व्यायाम करना सेहत के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। इससे उल्टी, मतली, पेट दर्द और पाचन से जुड़ी कई बड़ी समस्याएं झेलनी पड़ सकती है। अगर आप व्यायाम करना ही चाहते हैं तो भोजन के एक से डेढ़ घंटे बाद व्यायाम करें।

नहाना

खाना खाने के तुरंत बाद नहाने से रक्त का प्रवाह बदल सकता है, जिससे पाचन क्रिया धीमी हो सकती है। खाने के बाद पाचन तंत्र सबसे ज्यादा एक्टिव होता है लेकिन आपके नहाने से शरीर का तापमान बदल जाता है और खाना ठीक से पच नहीं पाता है।

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सुबह उठते ही करें ये आसान योगासन, बिना बिस्तर छोड़े पाएँ जबरदस्त फायदे

लोग फिट तो रहना चाहते हैं लेकिन अधिक मेहनत नहीं करना चाहते। योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्राकृतिक उपचार है। सुबह योगासनों का अभ्यास कई स्वास्थ्य लाभ दे सकता है लेकिन सुबह-सुबह उठकर योग करने का मन ही नहीं करता है। लोग आलस या समय की कमी के कारण योग नहीं कर पाते लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ आसन आप बिस्तर पर लेटे-लेटे ही कर सकते हैं।

इन योगासनों के अभ्यास के लिए आपको बिस्तर छोड़ने की भी जरूरत नहीं है। आप नींद खुलने के बाद इन योगासनों को बिस्तर पर आरामदायक स्थिति में लेटकर ही कर सकते हैं। यहां जानिए ऐसे तीन आसान लेकिन असरदार योगासन, जिन्हें आप बिस्तर पर ही कर सकते हैं।

पवनमुक्तासन 

इस आसन का अभ्यास सुबह उठते ही करना चाहिए। अभ्यास के लिए बिस्तर पर पीठ के बल ही लेटे रहें। एक पैर को घुटने से मोड़ें और छाती की ओर लाएं। अब दोनों हाथों से घुटने को पकड़ें और धीरे-धीरे सिर को उठाकर घुटने से मिलाएं। कुछ सेकंड तक इस स्थिति में रहें, फिर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आएं। इसी क्रिया को दूसरे पैर से दोहराएं। पवनमुक्तासन का अभ्यास गैस, ब्लोटिंग और अपच जैसी समस्याओं से राहत दिलाता है। रोज सुबह इसे करने से पाचन बेहतर होता है और पेट हल्का महसूस होता है।

गोमुखासन

गोमुखासन का अभ्यास पवनमुक्तासन के बाद करना चाहिए। इसके अभ्यास के लिए बिस्तर पर आराम से बैठ जाएं। अब एक हाथ को सिर के ऊपर से पीछे की ओर ले जाएं और दूसरा हाथ पीछे से ऊपर की ओर। दोनों हाथों की उंगलियों को एक-दूसरे से पकड़ने की कोशिश करें। कुछ सेकंड तक स्थिति बनाए रखें और फिर हाथ बदल कर दोहराएं। यह आसन कंधों और छाती की मांसपेशियों को खोलता है। इससे तनाव कम करता है और शरीर के ऊपरी हिस्से की स्थिति में सुधार होता है।

शवासन 

योगाभ्यास के आखिर में शवासन का अभ्यास करें। इसके लिए पीठ के बल सीधे लेटकर हाथों को शरीर से थोड़ी दूरी पर रखें और हथेलियां ऊपर की ओर रहें। आंखें बंद करके गहरी सांस लें और शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें। दो से पांच मिनट तक इसी स्थिति में रहें और केवल सांसों पर ध्यान केंद्रित करें। इस आसन के अभ्यास से थकान दूर होती है। शरीर को ऊर्जा मिलती है और मानसिक रूप से तरोताजा महसूस होता है।


क्या नींद की कमी से बढ़ सकता है वजन, आइये जानते हैं क्या कहते हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ

वजन घटाना आज के समय में ज्यादातर लोगों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। बढ़ते वजन-मोटापे की समस्या के साथ कई प्रकार की क्रॉनिक बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी इसका शिकार देखे जा रहे हैं।

वजन बढ़ने के लिए लाइफस्टाइल और आहार से संबंधित गड़बड़ियों को प्रमुख कारण माना जाता रहा है। इसके अलावा जिन लोगों की नींद पूरी नहीं होती है उनमें भी मोटापा और अधिक वजन का खतरा हो सकता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, नींद पूरी न होने और वजन बढ़ने के बीच एक गहरा और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध संबंध है। कई शोधों ने यह साबित किया है कि नींद की कमी से हमारे शरीर के हार्मोनल संतुलन, मेटाबॉलिज्म, भूख पर नियंत्रण और ऊर्जा खर्च पर प्रभाव पड़ता है, जिससे वजन बढ़ने का जोखिम काफी बढ़ जाता है।

नींद और वजन बढ़ने के बीच संबंध

अच्छी नींद और शरीर के वजन पर होने वाले इसके प्रभावों को जानने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं। इसमें से ज्यादातर शोध में पाया गया है कि रात में अच्छी नींद लेने से वजन घटाने में लाभ और नींद की कमी के कारण इसके नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं, जिसको लेकर सभी लोगों को विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है। आइए इस बारे में समझते हैं।

एक शोध के अनुसार नींद की कमी वाले अमेरिकी प्रतिभागियों पर किए गए अध्ययन में पाया गया है कि यह स्थिति औसत बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) में वृद्धि का कारण बनती है, जो शरीर के अधिक वजन और मोटापे की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

नींद की कमी बढ़ा सकती है वजन

नींद की कमी और वजन बढ़ने के बीच एक संबंध हमारे शरीर में हार्मोन्स के असंतुलन का भी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, नींद की कमी भूख को प्रभावित करती है। न्यूरोट्रांसमीटर घ्रेलिन और लेप्टिन को भूख के लिए जिम्मेदार माना जाता है। घ्रेलिन भूख को बढ़ावा देता है, और लेप्टिन पूर्ण महसूस करने में योगदान देता है।

शरीर स्वाभाविक रूप से पूरे दिन इन न्यूरोट्रांसमीटर को नियंत्रित रखता है। शोध में पाया गया है कि जिन लोगों को नींद न आने की समस्या होती है उनमें घ्रेलिन की अधिकता और लेप्टिन की कमी पाई गई। यह स्थिति आपको अधिक कैलोरी लेने को मजबूर करती है जिससे तेजी से वजन बढ़ने का खतरा रहता है।

अध्ययन में क्या पता चलता है?

यूनिवर्सिटी ऑफ सिकागो (2004) के एक अध्ययन में पाया गया कि जब लोग केवल 5 घंटे सोते हैं, तो उनके घ्रेलिन का स्तर बढ़ता है और लेप्टिन का स्तर घटता है, जिससे भूख बढ़ती है और ज़्यादा खाना खाने की प्रवृत्ति होती है।

नींद की कमी से मस्तिष्क का प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स कमजोर हो जाता है, जो निर्णय लेने और आत्म-नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होता है। इससे लोग ज्यादा फैट और शुगर वाले खाद्य पदार्थों की ओर आकर्षित होते हैं।

वेट लॉस के लिए करें प्रयास

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, अगर आप वजन कम करने की कोशिशों में लगे हुए हैं तो जरूरी है कि स्वस्थ आहार के साथ नियमित व्यायाम और रात की अच्छी नींद पर ध्यान दिया जाए। नियमित व्यायाम करने से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है और यह नींद को सुधारने में भी कारगर हो सकती है। व्यायाम नींद और वजन दोनों के लिए फायदेमंद है, सभी लोगों को दिनचर्या में इसे जरूर शामिल करना चाहिए।

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क्या डायबिटीज के मरीजों के लिए ज्यादा नमक खाना भी है खतरनाक, आइये जानते हैं क्या कहते हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ 

डायबिटीज एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है जिसका जोखिम सभी उम्र के लोगों में देखा जा रहा है। ब्लड शुगर बढ़े रहने वाली इस बीमारी पर अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए या फिर इसका इलाज न हो पाए तो इसके कारण शरीर के कई अंगों पर नकारात्मक असर हो सकता है।

डायबिटीज से बचे रहने या फिर ब्लड शुगर को कंट्रोल रखने के लिए सभी लोगों को चीनी वाली चीजें कम खाने की सलाह दी जाती है। पर क्या आप जानते हैं कि शुगर के मरीजों के लिए चीनी अकेला दुश्मन नहीं है, चीनी की ही तरह अगर आप डायबिटीज में ज्यादा नमक खाते हैं तो इसके कारण भी सेहत को गंभीर नुकसान हो सकता है।

डायबिटीज में ज्यादा नमक खाने से क्या दिक्कतें होती हैं, आइए समझते हैं।

डायबिटीज है तो नमक और चीनी दोनों कम खाएं

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, यह बहुत ही महत्वपूर्ण और अक्सर नजरअंदाज की जाने वाली बात है कि केवल चीनी ही नहीं, बल्कि अधिक नमक (सोडियम) का सेवन भी डायबिटीज रोगियों के लिए खतरनाक हो सकता है। अधिक नमक से भी इंसुलिन रेसिस्टेंस की समस्या बढ़ सकती है।

जर्नल ऑफ क्लिनिकल इन्वेस्टिगेशन में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पाया गया कि ज्यादा नमक का सेवन शरीर में इंसुलिन रेसिस्टेंस को बढ़ाता है, जिससे शरीर में शुगर लेवल कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। जब हमारे शरीर में इंसुलिन हार्मोन ठीक से काम नहीं करता, तो खून में मौजूद ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं जा पाता बल्कि खून में ही जमा होने लगता है, जिससे डायबिटीज की दिक्कत बढ़ सकती है।

ब्लड प्रेशर और हार्ट की समस्या

नमक खाने से ब्लड प्रेशर बढ़ने की समस्या के बारे में हम सभी अक्सर सुनते-पढ़ते रहते हैं। अगर डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर एक साथ हो जाए तो इससे हृदय रोग, किडनी फेलियर और स्ट्रोक का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार, डायबिटीज के मरीजों में हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में अगर आप अधिक मात्रा में नमक खाना शुरू कर देते हैं तो ये जोखिम और भी बढ़ सकते हैं।

किडनी फेलियर का खतरा

ब्लड शुगर के बढ़ना आपकी किडनी के लिए नुकसानदायक माना जाता रहा है। हाई शुगर की स्थिति किडनी में मौजूद तंत्रिकाओं को क्षति पहुंचाने लगती है। ऐसे में अगर आप अधिक मात्रा में नमक खाते हैं तो ये जोखिम और भी अधिक हो सकता है।

नेशनल किडनी फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादा नमक डायबिटिक रोगियों में किडनी को नुकसान पहुंचाता है क्योंकि यह किडनी पर प्रेशर बढ़ाता है और माइक्रोएलब्युमिन्यूरिया का खतरा पैदा करता है, इससे किडनी फेल होने की शुरुआत हो सकती है।

इन सावधानियों का भी रखें ध्यान

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डायबिटीज को कंट्रोल रखने और इसके कारण होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं से बचे रहने के लिए खान-पान पर ध्यान देते रहना बहुत जरूरी है। चीनी के साथ-साथ नमक का भी सेवन कम से कम करें। ज्यादा नमक शरीर में इंफ्लेमेशन को बढ़ाने लगता है जो क्रॉनिक बीमारियों का शुरुआती संकेत है। डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस के मुताबिक नमक का सेवन 5 ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।

खाने में नमक की मात्रा कम रखने के साथ प्रोसेस्ड फूड (जैसे चिप्स, अचार, सॉसेज, इंस्टेंट नूडल्स) से बचें। लो-सोडियम लेबल वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें। चीनी और नमक दोनों के कारण होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं को कम करने के लिए दिनभर में खूब पानी पीते रहना चाहिए।

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