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Joshimath: NTPC की सुरंग और जोशीमठ के पानी को लेकर NIH की प्रारंभिक जांच में आया खुलासा, सामने आई ये जानकारी

Joshimath: NTPC की सुरंग और जोशीमठ के पानी को लेकर NIH की प्रारंभिक जांच में आया खुलासा, सामने आई ये जानकारी

भूस्खलन की मार झेल रहे जोशीमठ में रिसने वाला पानी और एनटीपीसी प्रोजेक्ट के टनल का पानी अलग है। यह जानकारी सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा ने राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) रुड़की की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर दी.

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है। चारों केंद्रीय एजेंसियों की हाइड्रोलॉजिकल मैपिंग की फाइनल रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि पानी कहां से आ रहा है। डॉ. सिन्हा बुधवार को राज्य सचिवालय स्थित मीडिया सेंटर में पत्रकार वार्ता कर रहे थे.

यह पूछे जाने पर कि क्या पानी में तेल या सीमेंट मिला हुआ है, डॉ. सिन्हा ने कहा कि इसमें ऐसा कुछ नहीं था. बता दें कि जब जोशीमठ में दरारों के साथ पानी का अत्यधिक रिसाव हो रहा था तो स्थानीय लोगों ने इसके लिए एनटीपीसी की सुरंग को भी जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद एनआईएच की टीम ने जोशीमठ जाकर टनल वाली जगह और जेपी कॉलोनी के पास पानी के सैंपल लिए।
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सैंपल टेस्ट पर सबकी निगाहें टिकी थीं

सबकी निगाहें एनआईएच की जांच रिपोर्ट पर टिकी थीं। माना जा रहा था कि जांच रिपोर्ट से पता चलेगा कि सुरंग से पानी आ रहा है या इसका कोई और स्रोत है। लेकिन प्रारंभिक जांच में अभी भी रहस्य बना हुआ है।
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राहत: जोशीमठ में पानी का रिसाव घटकर 100 एलपीएम रह गया

जोशीमठ की जेपी कॉलोनी में पानी का रिसाव काफी कम हो गया है। बुधवार को यह 100 एलपीएम था, जबकि मंगलवार को यह 540 एलपीएम के जल निर्वहन के साथ 123 था। ऐसे में यह बड़ी राहत की बात है।
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हाइड्रोलॉजिकल मैपिंग की फाइनल रिपोर्ट एक महीने में आएगी

जोशीमठ लैंडस्लाइड पर अलग-अलग सर्वे करने वाली केंद्रीय संस्थाओं की रिपोर्ट के आधार पर एक महीने में हाइड्रोलॉजिकल मैपिंग की फाइनल रिपोर्ट आ जाएगी। चार संस्थानों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम पानी के रिसाव और भूमिगत जल का सर्वेक्षण कर रही है। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा ने बताया कि राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) व भूगर्भ जल संस्थान के वैज्ञानिकों के माध्यम से पानी के रिसाव की जांच की जा रही है. जबकि एनजीआरआई और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोसाइंसेज की टीमें रीस्टेट टेस्ट कर रही हैं। जिसमें आधुनिक तकनीक से करंट को जमीन के अंदर भेजा जाता है। जमीन के अंदर पानी होगा तो विद्युत क्षमता बढ़ेगी। यदि पत्थर होगा तो विद्युत क्षमता कम होगी।
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हैदराबाद की टीम सात दिनों तक पानी के सैंपल लेगी

एनजीआरआई हैदराबाद की टीम अगले सात दिनों तक पानी के नमूने लेगी। टीम द्वारा एक दिन में एक से दो सैंपल ही लिए जा सकते हैं। चारों टीमों की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट की जांच व मिलान के बाद ही वाटर स्प्रिंग व हाइड्रोलॉजिकल मैप तैयार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हाइड्रोलॉजिकल मैपिंग की फाइनल रिपोर्ट एक महीने के अंदर आ जाएगी। संस्थानों से प्राप्त हाइड्रोलॉजिकल, जियोलॉजिकल टेक्निकल, जियोफिजिकल रिपोर्ट के मिलान के बाद अंतिम निष्कर्ष निकाला जाएगा। तभी हम भूस्खलन के कारणों के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।


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