देहरादून: पहाड़ी राज्य उत्तराखंड बनाने के लिए राज्य की जनता को लंबे संघर्ष का दौर देखना पड़ा. कई आंदोलन और शहादत के बाद 9 नवंबर 2000 को आखिरकार एक अलग पहाड़ी राज्य को उत्तर प्रदेश से अलग कर दिया गया। इस पहाड़ी राज्य को बनाने में कई बड़े नेताओं और राज्य के आंदोलनकारियों ने अहम योगदान दिया है. जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। आखिर क्या है अलग राज्य बनने का इतिहास और कब था खास, देखिए उत्तराखंड बनने के संघर्ष की कहानी।
1897 में पहली बार हुई थी अलग राज्य के निर्माण की मांग:
उत्तराखंड को अलग पहाड़ी राज्य बनाने के लिए कई दशकों तक संघर्ष करना पड़ा था। पहली बार पहाड़ी क्षेत्र से ही पहाड़ी राज्य बनाने की मांग की गई थी। अलग राज्य की मांग सबसे पहले 1897 में उठाई गई थी। उस दौरान पहाड़ी क्षेत्र के लोगों ने तत्कालीन महारानी को बधाई संदेश भेजे थे। इस संदेश के साथ-साथ क्षेत्र की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की भी मांग की गई।
संयुक्त राष्ट्र के राज्यपाल को भेजा गया ज्ञापन:
जिसके बाद वर्ष 1923 में जब उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत का हिस्सा हुआ करता था, तब संयुक्त प्रांत के राज्यपाल को एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग के लिए एक ज्ञापन भी भेजा गया था। ताकि पहाड़ की आवाज सबके सामने बनी रहे।
पं. जवाहरलाल नेहरू ने पहाड़ी राज्य के गठन का समर्थन किया था:
इसके बाद वर्ष 1928 में कांग्रेस के मंच पर अलग पहाड़ी राज्य के गठन की मांग रखी गई। इतना ही नहीं वर्ष 1938 में श्रीनगर गढ़वाल में हुए कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी पृथक पहाड़ी राज्य के निर्माण का समर्थन किया था। इसके बाद भी जब पृथक राज्य का गठन नहीं हुआ तो वर्ष 1946 में कुमाऊं के बद्रीदत्त पांडेय ने पृथक प्रशासनिक इकाई के रूप में गठन की मांग की थी।
1979 में अलग राज्य के गठन के लिए संघर्ष तेज हुआ:
साथ ही 1950 से पहाड़ी क्षेत्र में अलग पहाड़ी राज्य की मांग के लिए संघर्ष हिमाचल प्रदेश से ‘पार्वतीव जन विकास समिति’ के माध्यम से शुरू हुआ। वर्ष 1979 में अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया गया था। जिसके बाद पहाड़ी राज्य बनाने की मांग जोर पकड़ती गई और संघर्ष तेज हो गया। इसके बाद 1994 में अलग राज्य बनाने की मांग और तेज हो गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ‘कौशिक कमेटी’ का गठन किया। इसके बाद 9 नवंबर 2000 को एक अलग पहाड़ी राज्य का गठन हुआ।
42 से ज्यादा लोगों ने दी थी शहादत:
पहाड़ी राज्य बनाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। जिसके लिए कई आंदोलन किए गए, कई मार्च निकाले गए। अलग पहाड़ी राज्य के लिए 42 आंदोलनकारियों को शहादत देनी पड़ी। अनगिनत आंदोलनकारी घायल हुए। उस समय पहाड़ी राज्य की मांग इतनी अधिक थी कि महिलाओं, बुजुर्गों और यहां तक कि स्कूली बच्चों ने भी आंदोलन में भाग लिया।
अलग राज्य के निर्माण में पहाड़ियों की महिलाओं का अहम योगदान रहा है।
उत्तराखंड राज्य के निर्माण में हमारे बड़े नेताओं और आंदोलनकारियों के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्र की महिलाओं ने भी अहम योगदान दिया। उत्तराखंड राज्य के गठन से पहले गौरा देवी ने पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चिपको आंदोलन शुरू किया था, जो लंबे समय तक चला। इसके बाद जब अलग राज्य के गठन के लिए संघर्ष चल रहा था तो इसमें पहाड़ी क्षेत्र की महिलाओं ने भी हिस्सा लिया। इस संघर्ष में कई महिलाओं ने अपनी शहादत दी थी। जिन्हें आज भी बड़े गर्व से याद किया जाता है।