ऐसा कहा जाता है कि भगवान की भूमि में जन्म लेने वाला ही जन्म-जन्मान्तर के पापों से मुक्त हो जाता है। उत्तराखंड में आपको कदम दर कदम चमत्कार देखने को मिलेंगे। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां एक बार दर्शन करने मात्र से सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। जी हां, आज हम बात कर रहे हैं सुरकंडा देवी मंदिर की। मां सुरकंडा का प्रसिद्ध सिद्धपीठ मंदिर टिहरी जिले के जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित है।
यह स्थान समुद्र तल से लगभग 3000 मीटर की ऊंचाई पर है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां सती का सिर गिरा था। कहानी ऐसी है कि जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन, शिव के मना करने के बाद भी सती यज्ञ में पहुंच गईं। वहां सती का अन्य देवताओं की तरह सम्मान नहीं किया जाता था। अपने पति के अपमान और खुद की उपेक्षा से नाराज सती ने यज्ञ कुंड में छलांग लगा दी।
इस पर शिव ने सती के शरीर को त्रिशूल में टांगकर आकाश में यात्रा करने लगे। इस दौरान सती का सिर सुरकुटा पर्वत पर गिरा। तभी से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसका उल्लेख केदारखंड और स्कंद पुराण में मिलता है। कहा जाता है कि देवताओं को हराने के बाद राक्षसों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। ऐसे में देवताओं ने माता सुरकंडा देवी के मंदिर में जाकर प्रार्थना की कि उन्हें उनका राज्य मिल जाए। राजा इंद्र ने यहां माता की पूजा की थी। उनकी इच्छा पूरी हुई और देवताओं ने राक्षसों को युद्ध में हरा दिया और स्वर्ग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
सुरकंडा मंदिर में गंगा दशहरा के अवसर पर देवी के दर्शन का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि जो इस समय देवी के दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह जगह बहुत खूबसूरत है। खास बात यह है कि मां अपने दरबार से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देती है। मां सुरकंडा देवी के लिए कहा जाता है कि यहां भक्तों की हर मनोकामना जरूर पूरी होती है।
आइए अब आपको यहां के नजारों के बारे में भी बता देते हैं। आप सुरकंडा मां के दरबार में खड़े हैं, यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं। यहाँ अधिकांश शीतकाल में हिमपात होता है। मार्च और अप्रैल में भी मौसम ठंडा रहता है। मई से अगस्त तक अच्छा मौसम रहता है। इसके साथ ही मंदिर परिसर में यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाओं की भी व्यवस्था है। सुरकंडा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए हर जगह से वाहन की सुविधा उपलब्ध है।
देहरादून होते हुए मसूरी होते हुए कद्दुखल पहुंचने के लिए 73 किमी का सफर तय करना पड़ता है। मंदिर यहां से दो किमी की पैदल दूरी पर है। ऋषिकेश से चंबा होते हुए 82 किमी की दूरी तय करके भी यहां पहुंचा जा सकता है। इसीलिए कहा जाता है कि जीवन में एक बार सुरकंडा देवी के दर्शन का बहुत महत्व है। मौका मिले तो अपनी मां के दरबार में जरूर आएं।